राहुल का ‘मैच फिक्सिंग’बम: लोकतंत्र पर सवाल या हार का बहाना?

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लोकतंत्र पर ‘मैच फिक्सिंग’ का साया: क्या राहुल गांधी ने उठाया सही सवाल या सिर्फ हार का बहाना?

rahul gandhi called match fixing maharashtra elections devendra fadnavis aggressive reply - राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनाव पर फिर उठाए सवाल, मैच फिक्सिंग के आरोपों पर आया CM ...

राजनीति की पिच पर इन दिनों खूब ड्रामा चल रहा है। एक तरफ हैं भारतीय जनता पार्टी, जो हालिया जीत की खुमारी में है, और दूसरी तरफ हैं कांग्रेस के राहुल गांधी, जिन्होंने अब सीधे लोकतंत्र की नींव पर ही सवाल उठा दिया है। उनका दावा है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 सिर्फ एक चुनाव नहीं था, बल्कि “धांधली वाले लोकतंत्र का खाका” था – एक ऐसा “मैच फिक्स”, जिसे बीजेपी ने अपनी मर्ज़ी से मोड़ दिया।

राहुल का ‘धांधली’ फॉर्मूला: पांच पॉइंट में समझिए आरोप

राहुल गांधी ने अपनी बात सिर्फ हवा में नहीं कही, बल्कि एक अंग्रेजी अखबार में अपने लेख के ज़रिए इसे विस्तार से समझाया है। उन्होंने एक तरह से ‘चुनाव कैसे चुराया जाता है’ का पांच-चरणीय फॉर्मूला दे दिया है:

  1. चुनाव आयोग की ‘नियुक्ति’: उनका पहला निशाना चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया पर है, जिसमें पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया गया।
  2. वोटर लिस्ट में ‘घोलमेल’: फर्जी मतदाताओं को सूची में जोड़ने का आरोप भी गंभीर है।
  3. वोटिंग प्रतिशत का ‘गणित’: मतदान प्रतिशत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की बात कही गई है, जिससे नतीजों पर असर पड़ता है।
  4. टारगेटेड ‘फर्जी मतदान’: सबसे चौंकाने वाला आरोप है कि जिन सीटों पर बीजेपी को जीत की सख्त ज़रूरत थी, वहां ‘निशाना साधकर’ फर्जी मतदान कराया गया।
  5. सबूतों का ‘गायब होना’: इन सब आरोपों से जुड़े सबूतों को जानबूझकर छिपाने का दावा भी किया गया है।

राहुल यहीं नहीं रुके। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि महाराष्ट्र तो बस शुरुआत है, बीजेपी की अगली ‘मैच फिक्सिंग’ बिहार विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकती है। उनका मानना है कि इस तरह की धांधली लोकतंत्र के लिए ‘ज़हर’ है और इससे जनता का अपने ही संस्थानों पर से भरोसा उठ जाता है।

बीजेपी का ‘पलटवार’: हार का बहाना या हकीकत से मुंह मोड़ना?

जब राहुल गांधी ने ये ‘डिजिटल बम’ फोड़ा, तो बीजेपी चुप कैसे रहती? महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया।

देवेंद्र फडणवीस ने राहुल के बयान को उनकी ‘हार का बहाना’ करार दिया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि राहुल गांधी ने बिहार चुनाव से पहले ही अपनी हार मान ली है और उन्हें ज़मीन पर उतरकर हकीकत को समझना चाहिए। उनके हिसाब से राहुल मतदाताओं का अपमान कर रहे हैं।

वहीं, धर्मेंद्र प्रधान ने इसे राहुल गांधी का “पुराना ड्रामा” बताया। उन्होंने कहा कि चुनाव हारने के बाद राहुल का यही तरीका है कि वे संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करते हैं और खुद को एक ‘काल्पनिक सिस्टम के विक्टिम’ के रूप में पेश करते हैं। प्रधान ने तो कांग्रेस के शासनकाल का हवाला देते हुए कहा कि तब तो चुनाव आयोग की नियुक्ति में विपक्ष के नेता को शामिल करने की व्यवस्था ही नहीं थी, जिसे मोदी सरकार ने पारदर्शिता के लिए शुरू किया है।

बीजेपी ने यह भी सवाल उठाया कि अगर कांग्रेस को धांधली का इतना ही यकीन था, तो उनके उम्मीदवारों ने फॉर्म 17सी डेटा के साथ जिला अधिकारी से संपर्क क्यों नहीं किया?

चुनाव आयोग की ‘भावनात्मक’ प्रतिक्रिया

इस पूरे विवाद में चुनाव आयोग भी कूद पड़ा है। उन्होंने राहुल गांधी के आरोपों को “कानून का अपमान” बताते हुए ‘भावनात्मक’ प्रतिक्रिया दी है। आयोग का कहना है कि वे पूरी पारदर्शिता से काम करते हैं और मतदाता सूची पर लगाए गए आरोपों का जवाब उन्होंने 24 दिसंबर 2024 को ही कांग्रेस पार्टी को दे दिया था, जो उनकी वेबसाइट पर भी मौजूद है।

क्या सच में लोकतंत्र खतरे में है या ये सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी?

यह एक बड़ा सवाल है। राहुल गांधी के आरोप गंभीर हैं, खासकर ऐसे समय में जब दुनियाभर में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन क्या उनके दावे ठोस सबूतों पर आधारित हैं, या यह सिर्फ एक हार के बाद अपनी पार्टी और मतदाताओं को एकजुट करने का एक तरीका है?

दूसरी ओर, बीजेपी का पलटवार भी उतना ही तीखा है। वे राहुल के आरोपों को लोकतंत्र और मतदाताओं का अपमान बता रहे हैं।

इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो साफ है: चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा बनाए रखना किसी भी लोकतंत्र के लिए बेहद ज़रूरी है। अगर जनता का भरोसा ही उठ गया, तो फिर चुनावों का क्या मतलब रह जाएगा?

आप क्या सोचते हैं? क्या राहुल गांधी के आरोपों में दम है, या यह सिर्फ ‘हार का बहाना’ है? हमें कमेंट्स में अपनी राय ज़रूर बताएं!

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