कश्मीर: जन्नत में पसरा खौफ – कब थमेगा लहू का यह सिलसिला?
कभी शांत वादियों और केसर की खुशबू के लिए जाना जाने वाला कश्मीर आज डर और आशंका के साये में जी रहा है। पहलगाम में हाल ही में हुए कायराना हमले ने, जिसमें निहत्थे पर्यटकों को उनके धर्म के आधार पर निशाना बनाया गया, उस नाजुक भरोसे को चकनाचूर कर दिया है जो धीरे-धीरे पनप रहा था। यह हमला सिर्फ कुछ व्यक्तियों पर नहीं, बल्कि उन करोड़ों भारतीयों की आत्मा पर गहरा आघात है जो कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानते हैं।
सवाल यह उठता है कि आखिर अपने ही घर में बेगाना महसूस करने की यह पीड़ा कब तक जारी रहेगी? जिस मिट्टी ने कभी प्रेम और सद्भाव की फसल उगाई थी, आज वहां मातम और चीखों का शोर क्यों गूंज रहा है? हमलावरों ने न जाति पूछी, न भाषा – बस कलावा और मंगलसूत्र देखकर मौत बांटी गई। यह सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश है कि कश्मीर अभी भी हिंसा और कट्टरता की आग में जल रहा है।
यह विडंबना ही है कि जिस देश में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पदों पर हिंदू विराजमान हैं, उसी देश में हिंदुओं को उनकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया जा रहा है। हमलावरों में खौफ का कोई निशान नहीं था, वे खुलेआम अपनी पहचान बता रहे थे, कलमा पढ़ने वालों को छोड़ दिया गया, जबकि हिंदू पहचान रखने वालों को बेरहमी से मौत के घाट उतारा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, जिन्हें देश के हिंदू मतदाताओं ने भारी बहुमत से सत्ता सौंपी, आज इस सवाल का सामना कर रहे हैं कि आखिर उनके शासन में देश के हिंदुओं के दिलों में इतना डर और असुरक्षा क्यों व्याप्त हो गई है? कश्मीर में कुछ स्थानीय और पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मिलकर जो खौफ पैदा किया है, वह शायद आने वाली पीढ़ियों को भी उस खूबसूरत वादी से दूर रखेगा।
सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने और नोटबंदी के बाद कश्मीर में सुरक्षा और शांति बहाल होने का भरोसा दिलाया था। इसी भरोसे के चलते कश्मीर में पर्यटन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2020 में जहां 36 लाख पर्यटक आए थे, वहीं 2024 में यह संख्या ढाई करोड़ तक पहुंच गई, और इस साल तीन करोड़ का अनुमान था। लेकिन इन लक्षित हमलों ने सरकार के दावों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।अब यह सवाल और भी गहरा होता जा रहा है कि सरकार इन हत्यारों को ढूंढकर ऐसी कड़ी सजा क्यों नहीं दे रही है जो दूसरों के लिए एक खौफनाक सबक साबित हो? यह सवाल सिर्फ आज का नहीं है, यह पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भी उठा था, जहां हमारे वीर जवानों ने अपनी जान गंवाई थी। बार-बार वही दर्द, वही खून और वही अनसुलझे सवाल सामने आ रहे हैं।
कश्मीर में आतंकवादी खुलेआम हिंदुओं को ‘काफिर’ बताकर उन्हें न छोड़ने की धमकी दे रहे हैं। जिस महिला के पति को मारा गया, उसने जब जान की भीख मांगी तो उससे कहा गया कि उसे नहीं मारेंगे, बल्कि जाकर मोदी को यह संदेश देने को कहा गया कि यह सिर्फ हमला नहीं, बल्कि जंग का ऐलान है। हमास के हमलों में भी इसी तरह चुन-चुन कर लोगों को मारा गया था। क्या भारत वह दृढ़ संकल्प और साहस नहीं दिखाएगा जो इजराइल ने दिखाया? 140 करोड़ हिंदुस्तानी इस सवाल का जवाब चाहते हैं। https://youtu.be/-jqfNapzJlM
गृह मंत्री अमित शाह का कश्मीर दौरा और प्रधानमंत्री का विदेशी दौरा रद्द करके वापस आना स्वाभाविक रूप से देश की पीड़ा को दर्शाता है। लेकिन सरकारों का सिर्फ आहत होना पर्याप्त नहीं है। आज सवाल यह है कि कहां है वह विदेश नीति जो दुनिया को भारत की ताकत का लोहा मनवाने का दावा करती थी? कहां है वह सीमा सुरक्षा जिस पर हमें गर्व था? कहां है वह गरज जो कहती थी कि इस देश में हिंदुओं के हितों की रक्षा करने वाली सरकार है और कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता?
यह एक कड़वी सच्चाई है कि कश्मीर में लोगों का बाल बांका नहीं हुआ है, बल्कि उनकी पहचान पूछकर, उनका धर्म जानकर, उन्हें बेरहमी से मारा गया है। धर्म के नाम पर जिहादियों का तांडव जारी है, और हम टीवी डिबेटों में उलझे हुए हैं, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कोई सेकुलरिज्म के नाम पर इस धार्मिक हत्या को खारिज कर रहा है, तो कोई न्यायपालिका पर सवाल उठा रहा है। इस नौटंकी के बीच में एक अटल सत्य यह है कि हम असुरक्षित हैं।आजादी के 77 साल बाद भी अगर हिंदुस्तान में हिंदू असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, तो यह कैसी आजादी है? कब तक सरकारें सिर्फ कड़ी निंदा करती रहेंगी? कब तक श्मशानों में यूं ही चिताएं जलती रहेंगी? कब तक महिलाओं को विधवा होना पड़ेगा? यह सवाल खासकर प्रधानमंत्री मोदी से है, जिन्होंने 2014 में आतंकवाद खत्म करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन देश आज भी उसी दर्द से जूझ रहा है।
इतिहास गवाह है कि सुरक्षा में चूक के कारण पहले भी ऐसी घटनाएं हुई हैं – 2016 में उरी हमला, 2017 में अमरनाथ यात्रा पर हमला, 2019 में पुलवामा हमला, 2024 में रियासी में तीर्थयात्रियों पर हमला, और अब 2025 में पहलगाम में पर्यटकों पर हमला। हर बार सुरक्षा में भारी चूक हुई और निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई।
जिन लोगों ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को चुना, वे आज यह कहते नहीं थकते कि उन्हें एक शक्तिशाली प्रधानमंत्री और लौह इच्छाशक्ति वाला गृह मंत्री मिला है। लेकिन फिर भी अगर कश्मीर आतंकवादियों की जागीर बना हुआ है, जहां वे बेखौफ होकर घूमते हैं और धर्म पूछकर गोलियां मारते हैं, तो यह कैसी आजादी है? कब तक लाशों पर मीटिंग, बयान और शोक संदेशों का मरहम लगाया जाएगा?
अब 140 करोड़ भारतीय पूछ रहे हैं, क्योंकि उनका गुस्सा और दर्द अब चीख बनकर फूट रहा है। कश्मीर की कहानी सिर्फ डर की नहीं, बल्कि दिल को चीर देने वाले दर्द की है। यह वह डर है जो हर हिंदुस्तानी की रगों में दौड़ रहा है, हर सांस को थरथरा रहा है। पहलगाम की वादियों में अपनों को खोने वालों की चीखें आज भी गूंज रही हैं। जो वहां से भाग निकले, वे हर आहट पर चौंक उठते हैं। भारतीय सेना की वर्दी देखकर भी उन्हें डर लग रहा है।
कश्मीर से लौटे लोग यह सोचकर कांप रहे हैं कि वे भी वहां हो सकते थे। अब कश्मीर जाने वालों के मन में एक ही सवाल है कि अगर वे गए या जाएं, तो क्या अगली बारी उनकी होगी? यह डर सिर्फ कश्मीर का नहीं, पूरे हिंदुस्तान का है। हर हिंदुस्तानी के दिल में एक ही सवाल गूंज रहा है कि हिंदुस्तान के अंदर हिंदुओं को इतना दर्द और खौफ क्यों है?
जब सरकार सुरक्षित भारत का ढोल पीट रही है, तो पहलगाम में आतंकी हिंदुओं को चुन-चुन कर क्यों मार रहे हैं? यह खौफ और दर्द हर उस इंसान के सीने में समा गया है जो यह खबर सुन रहा है और सोच रहा है। उसके मन में सिर्फ एक ही सवाल है कि जब यह हमारा देश है, हमारा घर है, हमारा कश्मीर है, तो फिर इस कश्मीर में हम ही क्यों मारे जा रहे हैं?कश्मीर का इतिहास ऐसे दर्दनाक उदाहरणों से भरा पड़ा है, जैसे गिरजा टिक्कू का बेरहमी से गैंगरेप और हत्या। आज कश्मीर का दर्द हम अपनी आंखों से देख रहे हैं, और यह दर्द परेशान करने वाला है। यह तस्वीर कश्मीर की खूबसूरती के बीच पड़ी सेकुलरिज्म की लाश की तरह है। वह वीडियो जहां एक मां अपने बच्चों की जान की भीख मांग रही है, और फौजी उसे दिलासा दे रहा है कि वह भारतीय सेना का जवान है, लेकिन मां की चीखें थमने का नाम नहीं ले रही हैं, क्योंकि उसने जो दर्द और खौफ देखा है, वह उसकी रूह में समा गया है। https://youtu.be/-jqfNapzJlM
लेफ्टिनेंट विनय नरवाल, एक 26 वर्षीय नेवी ऑफिसर, शादी के सिर्फ छह दिन बाद कश्मीर में हनीमून के लिए गए थे, लेकिन आतंकवादियों ने उनकी सांसें छीन लीं। यह सिर्फ हिंदुओं की लाशें नहीं थीं, यह धर्मनिरपेक्षता की चीखें थीं। उनका आखिरी वीडियो लोगों की आंखों को नम कर गया। गुस्सा और नफरत महसूस हो रही है। और यह सिर्फ एक कहानी नहीं, ऐसी अनगिनत कहानियां हैं। शुभम द्विवेदी, जिनकी 16 अप्रैल को शादी हुई थी, कश्मीर की जन्नत में हनीमून मनाने गए थे, लेकिन मजहबी आतंकवादियों ने उनकी पत्नी के मेहंदी के रंग फीके पड़ने से पहले ही उनकी मांग उजाड़ दी।
इस बार यह लड़ाई हिंदू-मुसलमान की नहीं थी। पहलगाम में न रामनवमी की शोभा यात्रा थी, न कोई जय श्री राम के नारे लगा रहा था, न किसी मस्जिद के सामने कोई नाच रहा था। इसके बावजूद पहचान पूछकर हत्या हुई। न जाति पूछी गई, न पता, न भाषा – सिर्फ एक सवाल था: “तुम हिंदू हो?”
अफसोस की बात है कि हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, जहां से ये आतंकवादी आए थे, कश्मीर के मुद्दे पर एकजुट हो जाता है, लेकिन हमारे हिंदुस्तान में हम अलग-अलग खेमों में बंटे हुए हैं। बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी – यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।
कश्मीर का सारा पैसा होटल, गाइड और टूर ऑपरेटरों में जाता है। टीवी पर प्रचार दिखाया जाता है कि कश्मीर सुरक्षित है। मीडिया बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती है, और सरकार भी दुनिया को यही दिखाना चाहती है कि कश्मीर में सब सामान्य हो गया है। लेकिन यह सामान्यता का ढोंग हमारे लिए महंगा पड़ गया।इसलिए आज बड़े अफसोस के साथ लोगों से कहना पड़ रहा है कि यह हमारी जमीन है, हमें जाना भी चाहिए। खतरा हर जगह होता है, लेकिन अगर आप कश्मीर जा रहे हैं, तो सोच-समझकर जाइएगा और अपनी जान हथेली पर लेकर जाइएगा। फैसला आपका है, लेकिन आंखें खुली रखिएगा, वरना अगली तस्वीर आपकी भी हो सकती है। यह सच्चाई है, जिसे अब स्वीकार करना पड़ेगा।
हालांकि, कश्मीर का दर्द सिर्फ वहां का नहीं, पूरे हिंदुस्तान का है। और ऐसा नहीं है कि सारे कश्मीरी गलत हैं, वे भी परेशान हैं, उनकी भी रोजी-रोटी छिन रही है। लेकिन एक सच यह भी है कि कश्मीर सुरक्षित नहीं है, और रोजी-रोटी से बढ़कर जिंदगी है। वह जिंदगी जो 28 लोगों ने गंवाई है। कोई कंपनी में नौकरी कर रहा था और फ्रस्ट्रेट होकर कश्मीर घूमने की सोच रहा था, तो किसी ने शादी करके जन्नत देखने का सपना संजोया था। अब वे सब इस दुनिया में नहीं हैं।और यही सियासत है, और यही सवाल हर इंसान के दिल में गूंज रहा है कि कब तक देश में यह सब चलेगा? क्या देश के गृह मंत्री और प्रधानमंत्री से इंसाफ मिलेगा? क्या कश्मीर कभी इतना सुरक्षित होगा कि बिना डर के वहां घूमा जा सके? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि हिंदुस्तान में हिंदुओं की जान कब तक बंगाल से लेकर कश्मीर तक असुरक्षित रहेगी? इस पर विचार करना होगा
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