महक हत्याकांड: दिल्ली में ‘ना’ कहने की कीमत

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महक हत्याकांड: दिल्ली में ‘ना’ कहने की कीमत, और सिस्टम की खामोशी!

दिल्ली की एक दिल दहला देने वाली घटना ने न सिर्फ एक मासूम लड़की की ज़िंदगी छीन ली, बल्कि हमारे सिस्टम की लापरवाही और सुस्त पड़ चुकी कार्यप्रणाली को भी पूरी तरह उजागर कर दिया है। यह कहानी है 18 साल की महक जैन की, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में बीए फर्स्ट ईयर की छात्रा थी।

हर शनिवार और रविवार को उसकी क्लास होती थी, और उसी रूटीन के तहत एक रविवार सुबह वह घर से निकली थी। मां ने टिफिन दिया, बेटी ने कहा “क्लास जा रही हूं”, और दरवाज़ा बंद हो गया — किसी को क्या पता था कि ये उसकी आखिरी विदाई होगी।

दोपहर होते-होते एक कॉल आया, जो सब कुछ बदलने वाला था। कॉल करने वाला एक लड़के का पिता था, जो कह रहा था कि आपकी बेटी ने मेरे बेटे पर चाकू से हमला किया है। और फोन पर पीछे से एक लड़की की आवाज़ आई—”मैंने भी महक को चाकू मारा है।” इसी एक कॉल ने इस कहानी को एक सामान्य प्रेम प्रसंग से खींचकर अपराध, पागलपन और प्रशासन की उदासीनता में बदल दिया।

जब 18 घंटे तक पुलिस रही खामोश

महक के माता-पिता—प्रीति और राकेश जैन—घबरा गए। वे फौरन मेहरौली थाने पहुंचे और बेटी के लापता होने की सूचना दी। पुलिस ने आश्वासन दिया कि तलाश की जाएगी, लेकिन केवल दो पुलिसकर्मियों को भेजा गया। अगले 18 घंटे तक ये परिवार कभी पार्क, कभी जंगल, तो कभी थाने के बाहर भटकता रहा।

इसी दौरान आरोपी अर्श से वीडियो कॉल पर बात भी हुई, लेकिन वह बातों को गोलमोल करता रहा। जब परिवार ने बार-बार सवाल किए और थाने में नाराज़गी जाहिर की, तो पुलिस ने उल्टा उन्हें डांटा। देर रात जब थाने के अधिकारी खुद पहुंचे, तब जाकर तीन टीमें बनाई गईं और अगली सुबह अर्श को उसके घर से हिरासत में लिया गया। पूछताछ में अर्श टूट गया और उसने कबूल किया कि वह चाकू और पेट्रोल लेकर महक को मनाने संजय वन गया था। महक ने मिलने से इनकार किया, तो उसने उस पर चाकू से वार किया, फिर शरीर को जलाकर भाग गया। बाद में उसने खुद का इलाज रोहिणी के अस्पताल में कराया और घर लौट आया, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

थाना क्षेत्र का ‘विवाद’: लाश पड़ी रही और पुलिस लड़ती रही

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। जहां महक की अधजली लाश मिली, वह जगह दो थानों—मेहरौली और किशनगढ़—की सीमा पर थी। यहां भी पुलिस का रवैया शर्मनाक रहा। दोनों थाने झगड़ते रहे कि केस किसका है—”तेरा इलाका या मेरा?” करीब दो घंटे की बहस और सीमा विवाद के बाद आखिरकार मेहरौली थाने में अपहरण और हत्या की FIR दर्ज हुई।

एकतरफा मोहब्बत का खौफनाक अंत: ‘ना’ कहने की कीमत मौत

इस पूरे मामले में आरोपी अर्श की मानसिकता भी उतनी ही चिंताजनक है। एक साल पहले उसकी महक से दोस्ती हुई थी, जो बाद में प्यार में बदली, लेकिन जब महक के परिवार ने रिश्ता खत्म कर दिया और उससे बात बंद कर दी, तो अर्श बर्दाश्त नहीं कर पाया। वह अक्सर महक का पीछा करता, फोन को ट्रैक करता, यहां तक कि घर आकर हाथापाई भी कर चुका था। एक बार तो उसकी हरकतों से तंग आकर परिवार शिकायत दर्ज कराने ही वाला था, लेकिन अर्श ने मां के पैर पकड़कर माफी मांग ली थी और केस दर्ज नहीं हो पाया। लेकिन वो माफी सिर्फ एक मुखौटा थी—पीछे छिपी थी बदले की भावना, जो आखिरकार महक की मौत पर जाकर खत्म हुई।

महक की बहन मृदुला ने बताया कि आरोपी ने पहले से ही महक की गतिविधियों पर पूरी नजर बना रखी थी, यहां तक कि कोरियन कल्चर सेंटर तक में जाकर उसे परेशान करता था। घर में अकेली मां के साथ उसने दुर्व्यवहार किया, धमकाया, पर हर बार वह किसी न किसी बहाने से बचता गया।

सवाल जो सिस्टम से जवाब मांगते हैं

सवाल यह है कि क्या अगर पुलिस पहले से सक्रिय होती, अगर परिवार की शिकायतों को गंभीरता से लिया जाता, तो क्या महक की जान बचाई जा सकती थी? क्या अर्श को इतनी हिम्मत सिस्टम की ढील ने नहीं दी कि वह जानता था—गुनाह करो, पकड़ में तो आओगे लेकिन देर से?

यह सिर्फ एक प्रेम कहानी का दुखद अंत नहीं है, यह एक बिगड़े हुए सिस्टम की भयावह तस्वीर है—जहां लड़की के लापता होने पर भी 18 घंटे तक कोई गंभीर कार्रवाई नहीं होती, पुलिस थाना क्षेत्र की सीमा में उलझी रहती है, और आरोपी खुलेआम घूमता रहता है। जब तक हमारे सिस्टम में “ना कहने” का मतलब “सजा” और “शिकायत” का जवाब “डांट” रहेगा, तब तक महक जैसे केस होते रहेंगे।

आज अर्श सलाखों के पीछे है, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिस्टम को भी जवाबदेह ठहराया जाएगा? महक तो अब कभी लौटकर नहीं आएगी, लेकिन उसकी मौत हमें एक गहरी सीख और कई तीखे सवाल देकर जरूर गई है।

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