विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भांग श्रृंगार घटना : क्या है सच्चाई?

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भांग श्रृंगार की अनोखी घटना, शिवलिंग का मुखौटा गिरता हुआ
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विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भांग श्रृंगार घटना: क्या है सच्चाई?

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भांग श्रृंगार की अनोखी घटना, शिवलिंग का मुखौटा गिरता हुआ
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में 18 अगस्त को हुई भांग श्रृंगार घटना का दृश्य।

घटना का विवरण (18 अगस्त)

18 अगस्त की रात लगभग 8 बजे महाकालेश्वर मंदिर में रोज़ाना की तरह शिवलिंग का श्रृंगार किया जा रहा था। उस समय शिवलिंग पर भांग से भगवान शिव का मुखौटा बनाया गया। हालांकि, बड़ी मात्रा में भांग लगाने के तुरंत बाद, आरती शुरू होने ही वाली थी कि श्रृंगार अचानक टूटकर नीचे गिर गया।

  • मुखौटे से नाक, होंठ और एक आंख गिर गई।

  • इसके बाद पुजारियों ने तुरंत नया श्रृंगार किया तथा आरती सम्पन्न हुई।

  • यह घटना मंदिर के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।

विवाद और सवाल

इस घटना के बाद मंदिर प्रबंधन समिति और पंडितों पर कई सवाल उठे। इसके अलावा ज्योतिषाचार्य और धर्मगुरुओं ने इस पर अलग-अलग मत व्यक्त किए।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिवलिंग पर भांग का श्रृंगार शास्त्रों के अनुसार उचित है या नहीं।

शास्त्रीय दृष्टिकोण

शिवपुराण या लिंगपुराण में भांग श्रृंगार का कहीं भी उल्लेख नहीं है। इसके अलावा, धर्माचार्यों का मानना है कि शिवलिंग पर लंबे समय तक भांग रहने से सतह को नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए उनका कहना है कि श्रृंगार का गिर जाना खुद महाकाल की तरफ से संकेत है कि यह परंपरा उचित नहीं है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

विशेषज्ञों के अनुसार, बेसाल्ट पत्थर, जिससे शिवलिंग बना है, में नमी और ऊष्मा का संतुलन होता है। खासकर वर्षा ऋतु और वातावरण की आर्द्रता के कारण, भांग जैसी सामग्री में जल की मात्रा प्रतिक्रिया करती है। यही कारण है कि श्रृंगार ढीला होकर गिर सकता है।
इसे ऋतु परिवर्तन का संकेत भी माना जा रहा है।

विधिक दृष्टिकोण (सुप्रीम कोर्ट निर्देश 2020)

वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए, कि शिवलिंग पर सीमित मात्रा में ही पंचामृत चढ़ाया जाए। साथ ही भांग व अन्य सामग्रियों के प्रयोग पर भी नियंत्रण रखना जरूरी किया गया।
फिर भी, वर्तमान में इन निर्देशों का पालन पूरी तरह नहीं हो रहा है। इसके कारण शिवलिंग पर अधिक मात्रा में भांग चढ़ाई जा रही है।

निष्कर्ष

यह घटना धार्मिक, वैज्ञानिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। धार्मिक विद्वान इसे “महाकाल का संकेत” मानते हैं। वहीं वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक प्रक्रिया और आर्द्रता का परिणाम समझते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश नियंत्रित भांग व अन्य सामग्री के उपयोग को स्पष्ट करते हैं।


महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा विधि और महत्व

उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा प्रतिदिन तीन बार होती है—सुबह ब्रह्म मुहूर्त में, फिर दोपहर और शाम को। पूजा की शुरुआत चिताभस्म से होती है, जिसे किसी मृतक की चिता से लाया जाता है तथा महंत इसका कार्य करते हैं।

फिर पंचामृत—दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इसके बाद श्रृंगार और भोग अर्पित किया जाता है। भस्म आरती महाकालेश्वर मंदिर की विशेष पूजा है। इसमें शिवलिंग को सूखे मेवे और भस्म से सजाया जाता है। यह पूजा भक्तों में गहरी भक्ति और श्रद्धा उत्पन्न करती है।

पूजा के दौरान वैदिक मंत्रों का जाप भी किया जाता है। शिवलिंग पर चंदन, पुष्प, धतूरा और इत्र चढ़ाया जाता है। खासकर सावन मास और महाशिवरात्रि जैसे पवित्र अवसरों पर बड़ी संख्या में भक्त सम्मिलित होते हैं और भव्य पूजा-अर्चना होती है।

भक्त पूजा के दौरान ‘ओं नमः शिवाय’ का जाप करते हैं। साथ ही, वे शिवपुराण की कथाएं भी सुनते हैं, जिससे उनकी श्रद्धा और बढ़ती है।

रुद्राभिषेक महाकालेश्वर की खास विधि है। इसमें शिवलिंग पर शुद्ध जल, दूध, घी और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। मंत्रों के उच्चारण के साथ आरती भी की जाती है। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

मंदिर में सुबह के समय विशेष भस्म आरती का आयोजन भी होता है, जो अनोखी पूजा विधि मानी जाती है।

इस प्रकार महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा में श्रद्धा, विधिपूर्वक अभिषेक, मंत्र जाप और आरती का खास स्थान है। पूजा करने से भक्तों के मन को शांति, आध्यात्मिक उन्नति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

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