NHRC का नोटिस: शरमिष्ठा पनौली की सुरक्षा पर सवाल

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जेल में जान का खतरा, शिकायतकर्ता लापता: शरमिष्ठा पनौली केस में NHRC ने DGP को भेजा नोटिस

शर्मिष्ठा पनोली को 13 जून तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया, चिल्लाते हुए बोली  - ये लोकतंत्र नहीं है

कोलकाता, पश्चिम बंगाल: 3 जून, 2025 – सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर शरमिष्ठा पनौली का मामला अब एक नया और चिंताजनक मोड़ ले चुका है। सांप्रदायिक नफरत फैलाने के आरोप में 30 मई को गिरफ्तार की गईं पनौली फिलहाल अलीपुर महिला सुधार गृह में न्यायिक हिरासत में हैं, लेकिन अब उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस पूरे मामले को संज्ञान में लेते हुए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक (DGP) को नोटिस जारी कर शरमिष्ठा पनौली की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।

स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं

पनौली के वकील ने अदालत में एक याचिका दायर करते हुए बताया है कि उनकी मुवक्किल किडनी स्टोन की समस्या से जूझ रही हैं और जेल में उन्हें उचित चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पा रही है, जिससे उनकी स्थिति लगातार बिगड़ रही है। यह एक गंभीर आरोप है, खासकर जब किसी विचाराधीन कैदी को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रखा जाए।

इससे भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि पनौली ने स्वयं अदालत को बताया है कि उन्हें जेल के अंदर अन्य कैदियों से जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं। यह आरोप सीधे तौर पर जेल अधिकारियों की जिम्मेदारी पर सवाल उठाता है कि वे कैदियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर रहे हैं। किसी भी कैदी, चाहे उस पर कोई भी आरोप क्यों न हो, की जान को खतरा नहीं होना चाहिए।

शिकायतकर्ता का रहस्यमयी ढंग से लापता होना

इस मामले में एक और चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया है। जिस व्यक्ति की शिकायत के आधार पर शरमिष्ठा पनौली को गिरफ्तार किया गया था, वह अब रहस्यमयी ढंग से लापता हो गया है। शिकायतकर्ता के परिवार ने दावा किया है कि गिरफ्तारी के बाद से उन्हें लगातार धमकी भरे फोन कॉल आ रहे थे। शिकायतकर्ता का इस तरह से अचानक गायब हो जाना पूरे मामले को और भी ज़्यादा जटिल और संदिग्ध बना देता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या शिकायतकर्ता पर कोई दबाव था, या इस मामले के पीछे कोई और बड़ी साज़िश है।

NHRC का हस्तक्षेप: न्याय की एक किरण?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का हस्तक्षेप इस मामले में एक महत्वपूर्ण कदम है। NHRC ने पश्चिम बंगाल के DGP से पनौली की सुरक्षा और चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों पर रिपोर्ट मांगी है। यह नोटिस न केवल पनौली के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ज़रूरी है, बल्कि यह पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी प्रकाश डालता है।

यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कानून के उचित प्रक्रिया का पालन, और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के मानवाधिकारों से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करता है। जिस तरह से यह मामला सामने आ रहा है, उससे स्पष्ट है कि केवल एक गिरफ्तारी से बात खत्म नहीं होती। अब देखना यह होगा कि पश्चिम बंगाल पुलिस और संबंधित अधिकारी इन गंभीर आरोपों पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं, और क्या शरमिष्ठा पनौली को जेल में सुरक्षित रखा जाएगा और उन्हें उचित न्याय मिल पाएगा।

आप इस मामले पर क्या सोचते हैं? क्या आपको लगता है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है, या कानून का सही ढंग से पालन किया जा रहा है? अपनी राय कमेंट्स में साझा करें।

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