पानी से प्रहार: कैसे सिंधु जल समझौते के निलंबन से पाकिस्तान पर बनेगा दबाव?
आज से ठीक एक सप्ताह पहले, 22 अप्रैल को, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकी हमला हुआ जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस कायराना हरकत के पीछे पाकिस्तान से आए आतंकवादियों का हाथ था। अब, एक हफ्ते के भीतर ही भारत ने वह कदम उठाया है जिसे पाकिस्तान वर्षों से डर के साये में सोचता रहा—सिंधु जल समझौते को निलंबित करना।भारत की यह रणनीतिक चाल सिर्फ एक कागजी निर्णय नहीं, बल्कि पाकिस्तान की नींव को हिलाने वाली एक ‘जल नीति’ है, जो अब हथियार बन चुकी है। भारत के पास अब पाकिस्तान जाने वाले पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने की पूरी शक्ति है। और इस पूरे घटनाक्रम का केंद्र बना है बगलीहार डैम, जो चिनाब नदी पर स्थित है।
बगलीहार डैम: पानी से मार की रणनीति का केंद्र
बगलीहार डैम जम्मू के रामबन जिले में स्थित है। यह वही स्थान है जहां से पाकिस्तान की ओर बहने वाले पानी पर भारत की ‘एक्सेस कंट्रोल’ है। एबीपी न्यूज़ की ग्राउंड रिपोर्ट में संवाददाता गणेश ठाकुर ने वहां से लाइव जानकारी दी। फिलहाल, डैम में ‘लीन पीरियड’ चल रहा है—यानि पानी की मात्रा कम है और गेट्स बंद हैं, सिर्फ हाइड्रोपावर जनरेशन के लिए जरूरी पानी छोड़ा जा रहा है।
डैम से 900 मेगावाट की बिजली उत्पादन होती है और जो पानी टर्बाइनों से गुजरकर वापस नदी में आता है, वही पानी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करता है। अब इसी फ्लो को रोकने, स्टॉक करने और रणनीतिक रूप से छोड़ने की तैयारी भारत कर रहा है।
पानी की तीन मार: पाकिस्तान के लिए खतरे की घंटी
भारत सिंधु जल समझौते को निलंबित कर पाकिस्तान पर तीन स्तरों पर दबाव बना सकता है:
1. प्यासा पाकिस्तान: अगर भारत पानी रोक लेता है तो सिंचाई और पीने के लिए पाकिस्तान में पानी की कमी हो जाएगी।
2. बाढ़ का खतरा: यदि अचानक भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया तो पाकिस्तान में बाढ़ आ सकती है।
3. रेतीली तबाही: भारत यदि डैम में जमा गाद (रेत-मिट्टी) को पानी के साथ पाकिस्तान में छोड़ता है, तो खेतों की मिट्टी खराब हो जाएगी और फसलें तबाह हो सकती हैं।
ये तीनों ही रणनीतियाँ भारत को जल को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की ताकत देती हैं।
डर जो 1999 से पाकिस्तान को सता रहा था,अब हो रहा है सचपाकिस्तान ने 1999 में बगलीहार डैम के निर्माण पर ही आपत्ति जताई थी। उनका दावा था कि भारत इस डैम को युद्ध की स्थिति में हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। तब मामला वर्ल्ड बैंक तक पहुंचा, जिसने भारत के पक्ष में फैसला दिया।लेकिन अब भारत के पास वो ‘वेपनाइज्ड कंट्रोल’ है जिसकी आशंका पाकिस्तान सालों से जताता आ रहा था। सबसे अहम बात यह है कि अब भारत को पाकिस्तान को कोई डेटा साझा करने की जरूरत नहीं—कब पानी छोड़ा जाएगा, कितना छोड़ा जाएगा, कुछ भी बताना जरूरी नहीं।
फिलहाल क्या स्थिति है और आगे क्या?
हालांकि अभी लीन पीरियड है, लेकिन मानसून के दौरान जब पानी का स्तर 5,000 क्यूबिक मीटर से ऊपर जाता है, तब गेट्स खोले जाते हैं। अगर भारत चाहे तो ड्राई सीजन में भी जल प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। अगर कई दिन तक पोंडिंग (स्टॉकिंग) की जाए और अचानक भारी मात्रा में पानी और गाद छोड़ी जाए, तो पाकिस्तान की फसलें और खेती को गंभीर नुकसान होगा।
यही नहीं, भारत अब डैम और बैराज की संख्या बढ़ाने की रणनीति पर काम कर रहा है ताकि जल संचयन और फ्लो कंट्रोल को और मजबूत किया जा सके।
निष्कर्ष: भारत की जलनीति अब रणनीतिक हथियार
भारत की इस नीति का प्रभाव तात्कालिक हो या दीर्घकालिक, यह साफ है कि पाकिस्तान के लिए यह ‘जल संकट’ गहराता जाएगा। अब जब सिंधु जल समझौता निलंबित हो चुका है, तो पाकिस्तान को हर मौसम, हर प्रवाह, हर बूंद के लिए भारत की नीति का इंतजार करना होगा—और वह भी बिना किसी पूर्व सूचना के।
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